‘क्रांति’ के हीरो और डायरेक्टर मनोज कुमार अब सिर्फ यादों में ज़िंदा हैं
4 अप्रैल को दिग्गज अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार का निधन हो गया। 5 अप्रैल को उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया। अंतिम विदाई में फिल्म क्रांति के लेखक सलीम खान अपने बेटे अरबाज़ खान के साथ पहुंचे, वहीं अमिताभ बच्चन समेत कई फिल्मी हस्तियों ने उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी। मनोज कुमार हिंदी सिनेमा के उन कलाकारों में से थे, जिन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए देशभक्ति की भावना को बड़े पर्दे पर जीवंत किया। उनके गानों और कहानियों ने दर्शकों के दिलों में देश के प्रति प्रेम जगाया। वे न केवल एक महान अभिनेता और निर्देशक थे, बल्कि एक बेहद विनम्र और संवेदनशील इंसान भी माने जाते थे।
जब नंदा ने किया ऐसा अहसान, जो मनोज कुमार जिंदगी भर नहीं भूल सके
साल 1972 में मनोज कुमार के निर्देशन में बनी फिल्म शोर एक यादगार फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में लीड एक्ट्रेस के तौर पर वे पहले शर्मिला टैगोर को लेना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बनी। फिर उन्होंने स्मिता पाटिल से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने भी इनकार कर दिया। इस पर मनोज कुमार की पत्नी शशि ने उन्हें नंदा का नाम सुझाया। जब मनोज कुमार नंदा के पास पहुंचे तो उन्होंने फिल्म के लिए हां कह दी, मगर एक शर्त रखी—वह इस फिल्म के लिए कोई फीस नहीं लेंगी। मनोज कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि नंदा का यह फैसला उन्हें आजीवन भावुक कर गया, और वह इस अहसान को कभी नहीं चुका पाए। दुर्भाग्यवश, 2014 में नंदा का निधन हो गया।
‘शोर’ की कहानी थी दिल को छू लेने वाली
फिल्म शोर में मनोज कुमार और नंदा के साथ जया बच्चन, प्रेमनाथ, मदन पुरी और असरानी ने अहम भूमिकाएं निभाई थीं। फिल्म की कहानी शंकर (मनोज कुमार) और उसकी पत्नी गीता (नंदा) के इर्द-गिर्द घूमती है। गीता एक हादसे में अपने बेटे दीपक की जान बचाते हुए खुद की जान गंवा देती है, और उस दुर्घटना में दीपक अपनी आवाज़ खो बैठता है। शंकर बेटे की आवाज़ वापस लाने के लिए डॉक्टर से सर्जरी करवाने की सलाह लेता है, लेकिन इसके लिए उसे पैसों का इंतज़ाम करना होता है। बेटे की खामोशी शंकर को अंदर तक तोड़ देती है, और इसी दुख में वह अपने काम पर भी ध्यान नहीं दे पाता। एक दिन फैक्ट्री में काम करते हुए वह खुद एक हादसे का शिकार हो जाता है और अपनी सुनने की शक्ति खो बैठता है।
शोर सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि एक पिता की मूक पीड़ा, एक पति का दर्द और इंसानी जज़्बातों की गहराई को दिखाने वाली कहानी थी—जिसे मनोज कुमार ने पर्दे पर बखूबी उकेरा।