जॉन अब्राहम स्टारर फिल्म ‘द डिप्लोमैट’ 14 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई, जिसमें भारतीय नागरिक उजमा अहमद की कहानी दिखाई गई है, जिन्हें एक भारतीय राजनयिक पाकिस्तान से बचाकर वापस भारत लाते हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब किसी भारतीय महिला ने खतरनाक हालातों से बचते हुए अपने देश लौटने में सफलता पाई हो। उजमा से करीब 22 साल पहले, कोलकाता की सुष्मिता बनर्जी ने तालिबान के चंगुल से बचकर भारत वापस लौटने की एक साहसिक कहानी लिखी थी।
1986 में, थियेटर रिहर्सल के दौरान सुष्मिता की मुलाकात अफगानी मनीलेंडर जांबाज खान से हुई, और कुछ ही समय में दोनों को प्यार हो गया। उन्होंने 2 मार्च 1988 को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी कर ली। शादी के बाद सुष्मिता अपने पति के साथ अफगानिस्तान के पकटिका प्रांत में रहने लगीं। हालांकि, तीन साल के भीतर जांबाज खान अपने व्यवसाय के कारण भारत लौट आया, लेकिन सुष्मिता को ससुराल में ही छोड़ दिया। वहां उन्हें यह पता चला कि जांबाज पहले से ही गुलगुट्टी नाम की महिला से शादी कर चुका था। पति के जाने के बाद, सुष्मिता को उनके ससुरालवालों ने शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। आखिरकार, उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया, लेकिन यह इतना आसान नहीं था। दो असफल प्रयासों के बाद, तीसरी बार उन्हें कामयाबी मिली।
एक गांव के शुभचिंतक की मदद से, सुष्मिता ने पाकिस्तान के इस्लामाबाद तक पहुंचने के लिए एक जीप का इंतजाम किया। हालांकि, भारतीय उच्चायोग में मदद मांगने पर उन्हें निराशा हाथ लगी, क्योंकि कमिशन ने उन्हें वापस तालिबान को सौंप दिया। सुष्मिता ने हार नहीं मानी और दोबारा भागने की कोशिश की, लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तालिबान ने उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया और 22 जुलाई 1995 को उन्हें मारने की तैयारी कर ली गई थी।
गांव के एक बुजुर्ग की मदद से सुष्मिता ने आखिरी बार बच निकलने की कोशिश की। इस दौरान, उन्होंने एके-47 उठाकर तीन तालिबानियों को मार गिराया। इसके बाद, गांव के बुजुर्ग ने जीप की व्यवस्था की, जिससे सुष्मिता काबुल पहुंच पाईं। हालांकि, वहां पहुंचते ही उन्हें तालिबान ने फिर से गिरफ्तार कर लिया। पूरी रात चली पूछताछ के बाद, सुष्मिता ने अपनी भारतीय नागरिकता और देश लौटने के अधिकार की दलील दी। अगले दिन, उन्हें भारतीय दूतावास भेजा गया, जहां से वह सुरक्षित दिल्ली पहुंचीं और फिर अपने होमटाउन कोलकाता वापस लौट आईं।